कबीर पंथ

कबीर पंथ सदगुरु कबीर के जनकल्याणकारी मानवतावादी ठोस, सिद्धांतों पर आधारित सत्य और सदाचार का पंथ है, जिसमें नैतिक नियमों की सुदृढ़ व्यवस्ता है। यह सर्व विदित है कि सदगुरु कबीर का युग राजनीतिक सामाजिक दृष्टियों से अशांति, सामाजिक असामान्यता, अव्यवस्था एवं अस्थिरता का युग था। हिन्दू धर्म में मत-मतान्तरों में बंट गया था। कर्मकांड, बाह्याडम्बर, ईर्ष्या-द्वेष, पारस्परिक कलह का चारों ओर बोलबाला था। नैतिक मूल्यों का पतन, व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन हो रहा था। इस तरह के विकृत वातावरण में संत कबीर ने धर्म, सम्प्रदाय, रंग-रूप, वर्ण जाति-पांति, आदि के खेमों में बटी जनता को एक ठोस धरातल पर लाने का अथक प्रयास किया, जिसके परिणामस्वरूप उनके ठोस सिद्धान्तों पर आधारित एक मानववादी पथ 'कबीर पंथ' स्थापित हुआ, जिस पर हिन्दू और मुस्लिम, सभी निर्विघ्न होकर एक साथ चल सके।......

सदगुरु कबीर

आध्यात्मिक जगत में संत शिरोमणि कबीर साहब का नाम लोग बड़ी श्रद्धा एवं आदर से लेते हैं। सत्य, प्रेम, करुणा के साक्षात स्वरुप कबीर महान युगदृष्टा पूर्ण सद्गुरू है। 'साच ही कहत और सांच ही गहत हो' उनका सीधा, सच्चा स्पष्ट मार्ग है। वे स्वयं अजर, अमर, अविनाशी, शुद्धबुद्ध, मुक्त चेतन स्वरूप होते हुए भी जीवों के कल्याण एवं उन्हें मुक्ति का मार्ग दिखाने के लिए अपनी इच्छा से चारों युगों में अलग-अलग नामों से प्रगट होते जा रहे हैं। सतयुग में सतसुकृत, त्रेता में मुनीन्द्र नाम, द्वापर में करूणामय नाम तथा कलियुग में कबीर नाम से अवतरित हुए हैं। 'युगनि-युगनि हम आइ चेतावा, ' 'अमर लोक से हम चलि आये, आये जगत मझारा हो', 'जीव दुःखित देख भवसागर, • ता कारण पगु धारा हो', 'कहियत मोहि भयल युग चारी' ' 'अब हम अविगत से बलि आये, हते विदेह देह धरि आये, काया कबीर कहाए' आदि अनेक वाणियों से यह तथ्य स्वतः स्पष्ट है। उन्होंने मानव चेतना को सभी प्रकार के भवबंधनों से निकाल कर हिमालय की ऊँचाई प्रदान की है। महापुरूषों का आगमन सदैव संक्रमण काल में विप्लव काल में होता है।......

धर्मदास जी साहेब

सद्गुरु कबीर साहब के अनन्य उपासक धनी धर्मदास जी साहेब परम सत्य को उपलब्ध विश्व वन्ध महान संत है। वे एक ओर गृहस्थ थे, अतुल धन सम्पदा के स्वामी थे तो दूसरी ओर सबसे अलग, सबसे अलिम शुद्ध चेतन मात्र थे। एक पैर गृहस्थ में था, तो दूसरा पैर वैराग्य में। दोनों अतियों को जो सम्भाल सके वही बेजोड़ परम सन्त हो सकता है। उनका जीवन कमलवत था। संसार में रहकर भी उसके ऊपर उठे हुए थे। 'क्या सन्ध्या क्या प्रात सवेरा, जहाँ देखूं तहँ साहब मेरा।' उनका सम्पूर्ण जीवन सद्गुरू की भक्ति से ओत-प्रोत था। भौतिक सम्पदा के आधार पर नहीं, बल्कि सत्य और गुरूभक्ति की महान उपलब्धि के आधार पर ही उन्हें धनी धर्मदास कहा जाता है। भक्त अपने आराध्य गुरू की प्रशंसा, स्तुति तो करता ही है परन्तु स्वयं सद्गुरू अपने मुख से बार-बार जिस शिष्य की प्रशंसा करे ऐसे धन्य भागी महापुरूष धनी धर्मदास जी ही हैं।......

वंश गुरु गद्दी

सदगुरु कबीर साहब की हमेशा यही इच्छा रही कि संसार के सभी जीव आवागमन से मुक्त हो जाये । जगत कल्याण की इसी भावना को दृष्टिगत करते हुए सदगुरु ने धर्मदास जी को आशीर्वाद दिया कि मेरे अंश रूप में माता आमिन के गर्भ से मुक्तामणि नाम साहब का अवतार होगा । इसी मुक्तामणि मुक्त आत्मा से ही धर्मदास जी के बिन्द वंश के रूप में ब्यालीस वंश प्रगट होंगे जो कबीर पंथ का संचालन करेंगे। वि.सं. 1538 में अगहन पूर्णिमा के दिन बाँधवगढ़ में मुक्तामणि नाम साहब उर्फ चूरामणि नाम साहब का अवतरण हुआ-अज्र की छाप पड़ा जब आई, तबै चूरामनि उपजे भाई ।अगहन मास तबै चलि आई, सुकल पक्ष उत्तम दिन भाई । चूरामनि नाम जन्म तब लीन्हा, धर्मदास बहुते सुख कीन्हा । हमरो वचन चूरामनि सारा, वंश अंश बयालिस अधिकारा ।। इस प्रकार का आदेश मिलने पर धर्मदास साहब के मन में वचन वंश चूरामणि नाम ......